नीलकमल और लालकमल

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एक राजा की दो रानियाँ थीं। उनकी एक रानी राक्षसी थी, पर यह बात किसी को मालूम न थी। दोनों रानियों का एक-एक बेटा था। अच्छी रानी के बेटे के नाम था कुसुम और राक्षसी रानी के बेटे का नाम था अजित। दोनों में बहुत मेल था।

राक्षसी रानी के मन में काला था। वह रक्त प्यासी थी। दोनों भाइयों का प्रेम उसे एक आँख नहीं सुहाता था। वह हमेशा इस ताक में रहती थी कि कब सौत के बेटे को मारकर उसके नरम-नरम मांस का शोरबा बनाकर पिएगी! उसकी मंशा को उसका सगा पुत्र बहुत अच्छी तरह समझता था, अतः वह कभी कुसुम का साथ नहीं छोड़ता था। गुस्से से राक्षसी रानी दाँत पीसती रहती थी। मौका न मिलने से वह दोष-त्रुटि ढूँढ़ती। अपनी दृष्टि-शक्ति से सौत का खून चूसती रहती। फलतः अच्छी रानी दुर्बल होती गई और एक दिन उसने बिस्तर पकड़ लिया। दो-तीन दिनों में उसका देहांत हो गया। सारे राज्य में शोक छा गया, परंतु असल कारण किसी को समझ में न आया।

राक्षसी रानी कुसुम को तो सताती ही थी, अपने पुत्र को भी उसका साथ देने के लिए धिक्कारती थी। एक दिन अजित ने कुसुम से कहा, “भैया जाने दीजिए, हमलोग उनके पास और नहीं जाएँगे।” उन लोगों ने उस राक्षसी माँ के पास जाना बंद कर दिया, परंतु राक्षसी माँ का अत्याचार फिर भी जारी रहा। अजित अपने दिल को कड़ा कर सब सहता रहा, पर नरम दिलवाला कुसुम धीरे-धीरे सूखता गया।

रानी ने जब देखा कि उसका सगा बेटा ही उसका शत्रु बन गया है, तो वह एकदम जल-भुन गई। एक रात राजा के हाथीखाने में एक हाथी की मौत हो गई, घुड़साल में एक घोड़ा मर गया और गोशाला में एक गाय मृत पाई गई। राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। दूसरी रात राजमहल में शोरगुल सुनकर राजा चिहुँककर उठे और तलवार लेकर अपने कमरे से बाहर निकले। सोने के पलंग पर अजित और कुसुम सोये थे। एक बड़ा राक्षस कुसुम को उठा लाया। इससे पहले कि राजा कुछ करते, रानी ने अपना एक केश तोड़कर राजा पर फेंक दिया। राजा वहीं जड़ हो गए। उसकी आँखों के सामने राक्षस कुसुम को खाने लगा। राजा की आँखों से अश्रुधार बह निकली, पर वे उसे पोंछ नहीं सके। उनका शरीर थर-थर काँप रहा था, पर वे बैठ भी न सके। रानी अट्टहास कर उठी।

कमल की नींद टूट गई। उसने देखा कि कुसुम भैया पास में नहीं हैं। वह हड़बड़ाकर उठा। उसने देखा कि रानी के हाथ का बाला-कंगन झम-झम कर रहा है और कुसुम भैया को राक्षस खा रहा है। क्रोध से उसका शरीर जलने लगा। वह दौड़कर वहाँ पहुँचा और राक्षस के सिर पर एक जोर का चूँसा मारा। राक्षस हाय-हाय कर चीत्कार कर उठा और सोने का एक टुकड़ा उगलकर भाग गया। रानी ने देखा कि यह तो अनर्थ हो रहा है। अपना ही पुत्र दुश्मन बन गया है ! क्रोधाग्नि में जलती रानी अपने ही पुत्र को चबाने लगी। तभी उसके गले से लोहे का एक टुकड़ा गिर पड़ा। हतप्रभ होकर वह उछल पड़ी और सोने एवं लोहे के टुकड़े को लेकर छत पर चढ़ गई। छत पर राक्षसों की भीड़ थी। उनमें कुछ कह रहे थे, “और खाऊँगा, और खाऊँगा।” और कुछ कह रहे थे, “अपने देश जाऊँगा।”

रानी बोली, “मैं यहाँ रहूँगी। तुम लोग अपने देश जाओ।”
झुंड बनाकर राक्षस अपने देश की ओर जब भागे, तो उनके धक्के से राजभवन का शिखर टूट गया, पेड़-पौधों की डालें टूट गईं, नदी के जल में उत्ताल लहरें उठी और राजा का हृदय काँप उठा।

जली-भुनी रानी अपने कमरे में आई। उसे कहीं से भी चैन नहीं आ रहा था। रात काटे नहीं कट रही थी। अंत में उसने अपनी जादुई आराम छड़ी एवं जिराम छड़ी को जला दिया और आसमान में उड़ती हुई एक नदी के किनारे उतरकर एक बाँस वन में एक स्थान पर सोने के टुकड़े एवं लोहे के टुकड़े को गाड़ दिया। फिर निश्चिंत होकर वह घर लौट आई।

दूसरे दिन राजा यह देखकर हैरान रह गया कि पूरे महल में जगह-जगह हड्डियों के ढेर, रास्ते में भी सर्वत्र हड्डियाँ बिखरी हुई हैं। पूरे देश में राक्षसों ने आतंक फैला रखा है, रक्षा का कोई मार्ग नहीं। जब लोगों ने सुना कि राक्षसों ने राजपुत्रों को भी खा लिया है, तो सब झुंड-का-झुंड बनाकर राज्य छोड़कर भागने लगे; राजा जड़ हो गए। उनके राज्य में राक्षस छा गए।

नदी किनारे बाँस वन में एक किसान बाँस काटने गया। एक बाँस को चीरने पर उसे दो अंडे दिखे। उसे समझ में नहीं आया कि वे साँप के अंडे थे या किसी और प्राणी के, अत: उसने अंडों को फेंक दिया। अंडे टूट गए। लाल रंग के अंडे से एक लाल रंग का राजपुत्र और नीले रंग के अंडे से नीले रंग का राजपुत्र प्रकट हुआ। माथे पर मुकुट, हाथ में नंगी तलवार लिये दोनों राजपुत्र वायुवेग से वहाँ से चले गए। डर से किसान मूर्च्छित हो गया। जब उसे होश आया तो उसने देखा कि लाल अंडे का खोल सोने का एवं नीले अंडे का खोल लोहे का बनकर वहाँ पड़ा हुआ है। किसान ने लोहेवाले खोल से अपने लिए एक हँसिया और सोनेवाले खोल से अपनी पुत्रवधू के लिए एक बाजूबंद बनवा दिया।

 

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