नारद शिवलोक से विष्णुलोक की यात्रा पर

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नारद बहुत खुश थे क्योंकि उन्होंने काम के खिलाफ जीत हासिल की और वह अपने पिता ब्रह्मा के पास यह बताने के लिए गए। नारद जी ने वास्तव में कुछ अच्छा किया और ब्रह्मा जी और भगवान शिव को इसके बारे में बताया, लेकिन उन्होंने इसे कोई बड़ी बात नहीं समझा। उन्होंने नारद से कहा कि वे इस बारे में भगवान विष्णु से बात न करें, जिससे नारद और अन्य परेशान और भ्रमित हो गए। नारद ने एक प्रतियोगिता जीती लेकिन उन्होंने नहीं सोचा था कि उनके पिता और शिव इससे खुश होंगे। लोगों ने सोचा कि शिव हमेशा अच्छे थे और उनका कोई दुश्मन नहीं था, लेकिन नारद ने सोचा कि उनकी जीत शिव को ईर्ष्या कर सकती है।

एक बार की बात है, कुछ लोग इस बात को लेकर उत्सुक थे कि शिव अपनी इच्छाओं को कैसे नियंत्रित कर पाए। लेकिन अपनी इच्छाओं पर काबू पाने के बजाय वह बहुत परेशान और गुस्से में आ गया। इसी क्रोध के कारण उन्होंने कामदेव नामक जीव को जलाकर खत्म कर दिया। याद है जब आपने हमें अपनी बड़ी जीत के बारे में बताया था? खैर, किसी और की कहानी है जिसने अपने दोस्त को अपनी जीत के बारे में नहीं बताया। यह व्यक्ति अपने मित्र की बहुत प्रशंसा करता था और उन्हें अपना गुरु मानता था। लेकिन उन्होंने अपने दोस्त को खुशखबरी नहीं सुनाई, और इससे उन्हें बुरा लगा। नारद निश्चित नहीं थे कि उन्हें अपनी सफलता के बारे में दूसरों के साथ खुशखबरी साझा करनी चाहिए या नहीं।

नारद शिवलोक से विष्णुलोक की यात्रा पर निकले, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इसकी योजना कब बनाई गई थी या रास्ते में वे किससे मिले थे। जब वे विष्णुलोक पहुंचे, तो द्वारपाल जय-विजय नारद को अस्त-व्यस्त और उनके वाद्य यंत्र को शांत देखकर आश्चर्यचकित रह गए। नारद ने जानना चाहा कि क्या उनकी जीत का समाचार पहले ही विष्णुलोक पहुंच चुका था, लेकिन उन्हें इसका कोई संकेत नजर नहीं आया। नारद ने द्वारपालों से कहा कि वे भगवान के दर्शन करना चाहते हैं।

जय-विजय को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि देवर्षि कहीं भी जा सकते हैं और उन्हें रोकने का कोई नियम नहीं है। उन्होंने सोचा कि उनके अंदर आने का नियम मूर्खतापूर्ण है। इसलिए वे भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें बताया कि देवर्षि आ रहे हैं और वे बदल गए हैं। भगवान विष्णु ने सुनी और मुस्कुराए और कहा कि देवर्षि को सम्मान के साथ लाना ठीक है। देवर्षि भगवान के दर्शन के लिए गए और उनके चरण स्पर्श किए। लेकिन भगवान ने उन्हें कोई आशीर्वाद नहीं दिया और पूछा कि देवर्षि को कैसा लग रहा है क्योंकि वह उदास दिख रहे थे। भगवान ने भी पूछा कि नारद कैसे कर रहे हैं। नारद रो रहे थे क्योंकि उन्हें कुछ नया पता चला। उन्होंने महसूस किया कि देवताओं और पितृ जैसे महत्वपूर्ण लोगों को भी कभी-कभी ईर्ष्या हो सकती है जब कोई और अच्छा करता है। यहां तक ​​कि शिव, जो बहुत शक्तिशाली हैं, भी ऐसा महसूस कर सकते हैं। नारद भ्रमित हो गए और पूछा कि किसी ने क्यों कहा कि उन्हें अपनी खुशखबरी सर्वज्ञ भगवान के साथ साझा नहीं करनी चाहिए।

श्रीहरि ने प्रश्न किया, “विजय गाथा? विजय का इतिहास क्या है नारद जी? नारद ने भगवान से कहा कि उन्होंने कामदेव के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई जीती है, जिसे पहले कभी किसी ने नहीं हराया था। हारकर कामदेव को नारद से क्षमा मांगनी पड़ी। नारद, जिसने शादी नहीं करने का फैसला किया था, श्री हरि ने पूछा था कि क्या उसने सेक्स की इच्छा पर काबू पा लिया है। महालक्ष्मी को प्रश्न हास्यास्पद लगा और श्रीहरि को शायद व्यंग्यात्मक लगा। वे नारद से जानकारी लेने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हें नहीं पता था कि कैसे जवाब दिया जाए। श्री हरि ने देवर्षि से कहा कि उन्हें दूसरों से प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे पहले से ही इस प्रकार की चीजों से ऊपर हैं। इसके बजाय, उसे जीतने या हारने की चिंता किए बिना दूसरे लोगों के लिए अच्छे काम करने पर ध्यान देना चाहिए।

यही एक अच्छा अनुयायी बनाता है। जब नारद ने यह सुना तो वे रो पड़े। भगवान भी जानता था कि ऐसा क्यों हुआ। महालक्ष्मी ने माथा छूकर नारद को दिलासा दिया। नारद ने बेहतर महसूस किया और भगवान को प्रणाम किया। भगवान ने कहा कि वह आशीर्वाद के रूप में कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं। नारद ने भगवान से लोगों को उनसे प्यार करने और उनकी पूजा करने की क्षमता देने के लिए कहा। नारद पृथ्वी पर टहल रहे थे और उन्होंने समुद्र के किनारे एक सुंदर नगर देखा। वह अंदर गया और उसे लगा जैसे वह किसी जादुई जगह पर आ गया हो। उसे देखकर सभी प्रसन्न हुए और राजा-रानी उसका अभिवादन करने भी आए। मायानगरी नामक स्थान पर महाराज नामक व्यक्ति द्वारा देवर्षि का स्वागत किया गया। महाराज ने देवर्षि को प्रणाम किया और फिर लोग पवित्र ग्रंथों से पढ़ने लगे। देवर्षि हैरान तो थे लेकिन इस बारे में ज्यादा सोचना नहीं चाहते थे। देवर्षि को पता चला कि उस जगह का नाम मायानगरी है और उन्होंने सोचा कि यह इतने भव्य शहर के लिए एक अच्छा नाम है।

देवर्षि एक महल में गए जहां उन्हें एक खास कुर्सी पर बिठाया गया। राजा और उसका परिवार उसके सामने जमीन पर बैठे थे। राजा ने रानी को कुछ फुसफुसाया और वह कहीं और जाने के लिए निकल पड़ी। बाद में देवर्षि ने उठकर राजा को विदा किया। तभी उसने देखा कि एक बहुत ही सुंदर राजकुमारी उसकी ओर चल रही है। राजा ने उसे अपनी बेटी, महालक्ष्मी के रूप में पेश किया। उन्होंने देवर्षि को प्रणाम किया और रानी ने उनसे आशीर्वाद मांगा। महारानी से “अनन्या भक्त” शब्द सुनकर राजकुमारी हैरान रह गई।

उसने देवर्षि को अपना हाथ बढ़ाकर अपना प्यार दिखाया, जो बहुत बुद्धिमान है। उसने उसे यह बताने के लिए कहा कि उसके भविष्य में क्या होगा क्योंकि उसके पास विशेष शक्तियाँ हैं। रानी ने राजकुमारी से कहा कि पहले बैठ जाओ और फिर अपना प्रश्न पूछो। जब देवर्षि ने राजकुमारी का हाथ देखा तो उसने सोचा कि जो कोई भी उससे विवाह करेगा वह बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति बनेगा। देवर्षि असमंजस में पड़ गए और कुछ नहीं बोले। महाराज ने राजकुमारी को देवर्षि को परेशान न करने और उसके भविष्य के बारे में फिर कभी पूछने को कहा। वह चाहते थे कि देवर्षि अपनी बेटी को उसके आगामी विवाह समारोह में आशीर्वाद दें और एक अच्छा पति चुनने में उसकी मदद करें। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय है, और देवर्षि इस तरह की चीज़ों के विशेषज्ञ हैं।

पूर्णिमा के दिन स्वयंवर नामक एक विशेष आयोजन होता था। महालक्ष्मी नाम की एक महिला के हाथों पर रेखाएं थीं जो उनका भविष्य बता सकती थीं। देवर्षि नाम का एक बुद्धिमान व्यक्ति जानता था कि उसका भविष्य क्या होगा और उसने जल्दी से वह सब कुछ पूरा कर लिया जो उसे करना था। वह जल्दी जाना चाहता था और जल्द वापस आने का वादा किया। वह अभी तक नहीं जानता था कि वह कहाँ जा रहा था।

श्रीहरि ने नारद को देखा तो मुस्कुराकर उनका अभिवादन किया। लक्ष्मी ने नारद से पूछा कि क्या उन्हें चिंता हो रही है। यह वचन सुनते ही नारद को बड़ा आश्चर्य और प्रसन्नता हुई। उन्होंने पहले से कहीं अधिक प्यार और देखभाल महसूस की। जिन लोगों ने यह कहा था उन्होंने सोचा था कि आखिरकार उन्हें वही मिलेगा जो वे चाहते थे। नहीं माँ, जैसा तुम सोच रही हो वैसा नहीं है। नारद बदल गए हैं और चालाक हो गए हैं क्योंकि वह केवल अपने बारे में सोचते हैं। यह आपकी तरह नहीं है, जो अपने बच्चों की परवाह करता है और उन्हें पहले रखता है।

अब श्रीहरि के बोलने की बारी थी। उन्होंने देवर्षि से पूछा कि क्या उनकी कोई इच्छा या इच्छा नहीं है। लेकिन श्रीहरि ने सोचा कि शायद देवर्षि को आज अपने अंदर कुछ चाहने का हल्का सा अहसास हुआ होगा। देवर्षि शांत और चकित थे क्योंकि उन्हें ऐसा लग रहा था कि अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उन्हें जो कुछ भी चाहिए वह आसानी से हो रहा था। उनका मानना ​​था कि सब कुछ एक साथ अच्छी तरह से काम कर रहा था। उन्होंने इसके लिए भगवान का शुक्रिया अदा किया और मदद के लिए प्रार्थना की।

पूर्णिमा के दिन स्वयंवर नामक एक विशेष आयोजन होता था। महालक्ष्मी नाम की एक महिला के हाथों पर रेखाएं थीं जो उनका भविष्य बता सकती थीं। देवर्षि नाम का एक बुद्धिमान व्यक्ति जानता था कि उसका भविष्य क्या होगा और उसने जल्दी से वह सब कुछ पूरा कर लिया जो उसे करना था। वह जल्दी जाना चाहता था और जल्द वापस आने का वादा किया। वह अभी तक नहीं जानता था कि वह कहाँ जा रहा था। श्रीहरि ने नारद को देखा तो मुस्कुराकर उनका अभिवादन किया। लक्ष्मी ने नारद से पूछा कि क्या उन्हें चिंता हो रही है। यह वचन सुनते ही नारद को बड़ा आश्चर्य और प्रसन्नता हुई। उन्होंने पहले से कहीं अधिक प्यार और देखभाल महसूस की। जिन लोगों ने यह कहा था उन्होंने सोचा था कि आखिरकार उन्हें वही मिलेगा जो वे चाहते थे। नहीं माँ, जैसा तुम सोच रही हो वैसा नहीं है। नारद बदल गए हैं और चालाक हो गए हैं क्योंकि वह केवल अपने बारे में सोचते हैं।

यह आपकी तरह नहीं है, जो अपने बच्चों की परवाह करता है और उन्हें पहले रखता है। अब श्रीहरि के बोलने की बारी थी। उन्होंने देवर्षि से पूछा कि क्या उनकी कोई इच्छा या इच्छा नहीं है। लेकिन श्रीहरि ने सोचा कि शायद देवर्षि को आज अपने अंदर कुछ चाहने का हल्का सा अहसास हुआ होगा। देवर्षि शांत और चकित थे क्योंकि उन्हें ऐसा लग रहा था कि अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उन्हें जो कुछ भी चाहिए वह आसानी से हो रहा था। उनका मानना ​​था कि सब कुछ एक साथ अच्छी तरह से काम कर रहा था। उन्होंने इसके लिए भगवान का शुक्रिया अदा किया और मदद के लिए प्रार्थना की।

“बेटा, मुझे बताओ!” क्या आप मुझे अपना पेपर उस दिन दे सकते हैं जब चंद्रमा बहुत बड़ा और गोल हो? मुझे केवल एक दिन की जरूरत है। मैं कैसा दिखेगा? देवर्षि ने श्रीहरि से पूछा कि क्या वे विभिन्न वस्तुओं में परिवर्तित हो सकते हैं, लेकिन उन्हें चिंता थी कि कहीं श्रीहरि ना न कह दें। देवर्षि को श्री हरि ने एक विशेष वरदान दिया था। यह उपहार उसे हरि रूप में बदल देगा जब चंद्रमा पूर्ण होगा। देवर्षि खुश तो थे लेकिन थोड़ा अनिश्चित भी कि क्या यह सच है। उसने अपने प्रियतम की ओर देखा और सोचा कि कहीं श्री हरि उसके साथ मजाक तो नहीं कर रहे हैं। श्री हरि ने नारद से कहा कि वे अच्छे लोगों से झूठ नहीं बोलेंगे क्योंकि वे उनकी रक्षा के लिए हैं। नारद को बड़ा आश्चर्य हुआ। कोई चोरी करने वाला पकड़ा गया। लोग सोचने लगे थे कि इसमें प्यार शामिल हो सकता है।

चांद पूरा होने पर मायापुरी में बड़ी पार्टी हुई। पार्टी में कई अहम लोग आए। हर कोई उत्साहित और नर्वस महसूस कर रहा था। महालक्ष्मी उनके बारे में सब कुछ जानती थीं। शाम को रंगारंग समारोह हुआ और बड़े-बड़े लोग अपने-अपने आसनों पर बैठे। राजा ने घोषणा की कि उनकी बेटी उनमें से एक पति का चुनाव करेगी। उनकी बेटी जिसे भी वरमाला पहना देती वह मायापुरी का नेता बन जाता। महाराज ने बात समाप्त की और फिर सुंदर संगीत बजा। महालक्ष्मी अपनी सखियों के साथ कमरे में आईं जो बहुत दयालु और कोमल थीं। वह इतनी कमाल की लग रही थीं कि सबकी बोलती बंद हो गई और वे उन्हें देखने लगे। अगर वह किसी के पास से गुज़रती, तो उन्हें बहुत दुख होता। राजकुमारी बैठने के लिए जगह की तलाश कर रही थी और एक आदमी के सामने रुक गई जो उसका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करने के लिए आगे झुक गया। उसके दोस्त हँसे, लेकिन हर बार जब वह उसके पास से गुज़रती थी तो वह आदमी अगली खाली सीट पर चला जाता था। उसे लग रहा था कि उसे चुना जा सकता है, भले ही ऐसा नहीं हुआ।

राजकुमारी से मिलने विष्णु नाम का एक राजकुमार आया। उसे देखते ही वह बहुत खुश हो गई। इससे पहले कि वह बैठ पाता, उसने उसके गले में एक सुंदर हार भी डाल दिया। लेकिन फिर, लोगों को आश्चर्य होने लगा कि उसने ऐसा क्यों किया जबकि उसने पहले ही किसी और को शादी के लिए चुन लिया था। राजकुमारी बहुत लोकप्रिय थी और बहुत से लोग उसके पास आना चाहते थे। लेकिन जब वे करीब आए, तो किसी कारण से वे वाकई डर गए।

नारद नाम का एक व्यक्ति बहुत परेशान था क्योंकि उसने सोचा था कि राजकुमारी को श्री हरि नामक देवता से प्रभावित होना चाहिए था, लेकिन वह नहीं थी। यह अजीब था क्योंकि मोहिनी नाम की एक अन्य देवता इससे पहले शिव नाम के एक शक्तिशाली देवता को भी छलने में सक्षम थी। सिपाही ने नारद को यह कहकर चिढ़ाया कि वह मजाकिया लग रहा है और बैठक में शामिल नहीं है।

जब नारद ने दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखा, तो वह वास्तव में पागल हो गया क्योंकि वह बंदर जैसा दिख रहा था। सैनिक डर गए, लेकिन फिर भी उनमें से एक ने उन्हें आईना दे दिया। नारद वास्तव में परेशान थे क्योंकि उन्हें लगा कि उनके साथ छल किया गया है और उनका अपमान किया गया है। नारद विष्णु से मिलने जा रहे थे। अचानक, विष्णु का रथ प्रकट हुआ और नारद निकट आने के लिए बहुत तेजी से आगे बढ़े। जब उन्होंने रथ को देखा तो यह देखकर हैरान रह गए कि राजकुमारी महालक्ष्मी विष्णु के साथ हैं। एक व्यक्ति श्रीहरि से बहुत परेशान था क्योंकि उसे वह नहीं मिला जो वह चाहता था। उन्हें इतना क्रोध आया कि उन्होंने श्रीहरि को अपने जैसा कष्ट सहने का श्राप दे दिया।

इससे श्रीहरि बहुत दुखी हुए क्योंकि उन्हें वास्तव में उस व्यक्ति की परवाह थी जिसने उन्हें श्राप दिया था। आमतौर पर शांत रहने वाले नारद को भी गुस्सा आया और परेशान भी। श्री हैरी मुस्कुराए, ‘मोटे, मैं तुम्हारा बयान स्वीकार करता हूं। मैं अपनी पत्नी का दर्द सह लूंगा, लेकिन मैं अपने उद्धारकर्ता के पथ से विचलित होने को बर्दाश्त नहीं करूंगा। क्या आपको याद है जब आपके पिताजी और सदाशिव ने मुझसे कहा था कि तुम्हें कुछ नहीं बताना चाहिए? खैर, अब आप समझ गए होंगे कि उन्होंने ऐसा नियम क्यों बनाया।

श्री हरि के बोलने पर देवर्षि का भ्रम और अभिमान दूर हो गया। वे चुपके से राजकुमारी को देख रहे थे। मां लक्ष्मी ने कहा कि माता-पिता हमेशा अपने बच्चे के लिए सबसे अच्छा चाहते हैं और उनका काम सही दिशा में उनका मार्गदर्शन करना है। जब नारद ने राजकुमारी को देखा तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि वह वास्तव में राजकुमारी नहीं, बल्कि मां लक्ष्मी थीं। नारद इस कदर चकित हुए कि वे गिर पड़े और उनके दोनों पैर छू लिए। बहुत समय पहले, एक श्राप के बारे में एक कहानी थी जिसने विष्णु नाम के देवता को राम नाम के मानव में बदल दिया था। उन्हें अपनी पत्नी सीता के बिना जंगल में रहना पड़ा। आखिरकार उन्हें उसे भी वहीं छोड़ना पड़ा।

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