
महात्मा बुद्ध का अनमोल उपदेश !!!
बहुत समय पहले, एक राज्य में रहने वाले लोगों के लिए पर्याप्त भोजन नहीं था।
जब गौतम बुद्ध ने कुछ देखा तो वे बहुत दुखी हुए। उन्होंने सबसे कहा कि बहुत से लोग वास्तव में पर्याप्त भोजन और कपड़े चाहते हैं।
सभी को दूसरों की मदद करनी चाहिए। फर्क करने के लिए आप जो कर सकते हैं वह दें।
बुद्ध के बात करने के बाद, सभी बिना सुने घर चले गए।
एक आदमी जिसके पास बहुत पैसे नहीं थे, बैठ गया और उसने अपने पहने हुए कपड़ों को देखा।
यदि मैं अपने कपड़े उतारकर किसी और को दे दूं, तो मेरे पास पहनने को कपड़े न होंगे, और मैं नंगा हो जाऊंगा।
यह ऐसा ही है जैसे बच्चे बिना कपड़ों के पैदा होते हैं और कभी-कभी लोग बिना कपड़ों के ही चले जाते हैं।
कुछ लोग बिना कपड़ों के रहना पसंद करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर किसी के लिए ऐसा करना ठीक है। उसने अपने कपड़े उतारे और बुद्ध को दे दिए।
बुद्ध ने उन्हें बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया। फिर वह खुशी-खुशी अपने घर चला गया। एक आदमी बहुत खुश था और चिल्ला रहा था क्योंकि उसने कुछ महत्वपूर्ण जीत हासिल की थी।
राजा ने उसे सुना और उससे बात करने गया।
राजा ने पूछा कि उसने यह महत्वपूर्ण वस्तु कैसे जीती?
एक दुखी व्यक्ति ने कहा कि भगवान बुद्ध चाहते थे कि लोग उन लोगों की सहायता के लिए वस्तुएँ दें जो दुःखी हैं।
यह सुनते ही मैंने अपने कपड़े उतार दिए। पहले तो मेरा दिमाग ऐसा नहीं करना चाहता था। मैंने महात्मा बुद्ध से कहा कि जब लोग पैदा होते हैं तो उनके पास कपड़े नहीं होते और जब वे मर जाते हैं तो अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकते।
उसकी बात से राजा खुश हुआ। उसने उसे सुन्दर गहने और सुन्दर वस्त्र उतार दिए। फिर उसने इसे भगवान बुद्ध को उपहार के रूप में दे दिया।
बुद्ध ने उस व्यक्ति को को गले से लगाया और उनसे कहा कि इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि किसी पे पास क्या क्या है फ़र्क़ इस से पड़ता है वह दूसरों को क्या देने के क़ाबिल है और क्या कुछ नौशावर सकता है, यही ज़िन्दगी का सार है यही सुखी जीवन का अनमोल आभूशण है।