जीता कौन ?- रावण या यमराज

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राक्षसों का राजा रावण ब्रह्मा जी के वर कारण घमंड से भर उठा। कुबेर को हरा कर लंका का स्वामी बन गया। पुष्पक विमान उसने छीन लिया। यक्षों के भाग जाने के बाद राक्षस लंका में बस गए।

रावण का आतंक पूरी दुनिया में फैल गया। क्या देवता, क्या मनुष्य, सब लोग आतंकित रहते हैं। रावण खुद को ब्रह्माण्ड का स्वामी ससमझने लगा । उसे लोगों को सताने में मजा आता था।

एक दिन वह पुष्पक विमान में विमान यात्रा कर रहा था । इसी प्रकार प्राचीन काल के बीच में देववर्षि नारद जी दिखाई देते हैं। रावण ने उन्हें प्रणाम किया।

नारद जी बोले- “रावण, ब्रह्मा जी से वर प्रार्थना बल बहुत बड़ा है।” तुम सबसे जीते हुए हो। एक बात फिर भी मेरी समझ में नहीं आती।

तुम मेरे इंसानो को क्यों बेचते हो? यदि शस्त्र आपकी शक्ति का प्रमाणदेना ही है  तो यमराज के पास जाओ । यदि तुमने यमराज को हरा दिया तो आप विश्व विजेता कहलाओगे। ।

नारद जी की बात सुनकर रावण बोला-‘देवर्षि, यह तो आपने ठीक कहा। मेरी प्रतिज्ञा है कि मैं चारों लोकपालों को परास्त करूंगा। मैं अभी यमपुरी जा रहा हूँ। ‘सब विधान को मृत्यु देने वाले सूर्य पुत्र यम को मैं मार डालूंगा।’ इतना कह कर रावण दक्षिण दिशा में चल पड़ा।

नारद जी भी यमपुरी की ओर चल दिए और रावण से पहले वहीं पहुंच गए। उन्होंने देखा कि अग्नि साक्षात् को यमराज ने मोक्ष के पाप-पुण्य का भुगतान कर दिया है। नारद जी को आया देख, यमराज ने उन्हें प्रणाम किया।

बोले-‘देवर्षि, सब कुशल तो है? आज आपका आना कैसा हुआ?’

नारद जी बोले-मैं आपको एक महत्वपूर्ण सूचना देने आया हूँ। शांत चित्त ध्यान से मेरी बात सुनो और तुरंत अपनी रक्षा का उपाय कर लो। क्योंकि रावण अपनी सेना के साथ युद्ध करने आ रहा है। आपको सचेत करने के लिए ही मैं पहले यहां आया हूं। वैसे मेरी इस बात को अच्छी तरह से पता है कि आप से जीत नहीं पाएंगे ।’

अभी यमराज और नारद की बातें कर ही रहे थे कि रावण का पुष्पक विमान दिखाई देता है।

रावण ने स्वर्ग और नर्क दोनों देखे। स्वर्ग में पुण्यात्मा अपने सत्कर्मों के बल पर सुख से थे। दूसरी ओर पापी लोग भयंकर उत्पात पा रहे थे।

रावण कुछ पल यह देख रहा है, फिर उसने नरक-वासियों को मुक्त कर दिया। यमदूतों ने उनसे क्षमा की कामना की, रावण की शक्ति के आगे उन्हें हार माननी पड़ी।

थोड़ी देर में यमदूत वैराट आए और रावण से युद्ध करने लगे। तब तक राक्षस भी आ गए थे।

उन्होंने रावण के पुष्पक विमान को तोड़-फोड़ डाला। लेकिन बाकी ही पल पुष्पक विमान फिर से पहले जैसा हो गया। यह ब्रह्मा जी का प्रभाव था।

पुष्पक विमान बार-बार तोड़े जाने पर भी नष्ट होने वाला नहीं था।

यमदूतों और राक्षसों के बीच भयानक युद्ध हुआ। कुछ यमदूत रावण पर भी शूलों की वर्षा करने लगे।

उनके प्रहार से रावण बुरी तरह घायल हो गया। पुष्पक विमान का तो कुछ न कहा, पर रावण परेशान हो उठा। उसका कवच कट गया। शरीर से रक्त प्रवाह लगा। उसकी हालत देख, राक्षस भी घबरा कर सामने आ गये।

तब रावण ने अधिकारो-थारो कह, उन्हें छोड़े और पाशुपत नामक दिव्य अस्त्र का संधान किया। छूटते ही वह अस्त्र आग की तरह जल उठा। सब तरफ चकाचौंध हो गया। पाशुपत के प्रभाव से यमराज के सैनिक धराशायी हो गए। एक भी न बचा। यह देखो, रावण जोर से हंसा और बोला-‘मैंने यमराज को जीत लिया।’

जब सूर्य देव के पुत्र यम ने रावण की सिंहनाद सुनी तो वे बहुत क्रोधित हो गये। तुरंत, उनका सारथी अपना विशेष दिव्य रथ लेकर आया। यहाँ तक कि समय का देवता काल भी सामने आ गया। इससे सभी देवता बहुत भयभीत हो गये। यम अपने दिव्य रथ पर सवार हो गये और रावण का सामना करने चले गये।

यमराज ने मार मार कर रावण को घायल कर दिया । उस ने क्रोधित होकर यमराज पर बहुत सारे बाण चलाये। उस को एहसास हुआ कि यमराज भी उसके जैसे ही शक्तिशाली हैं। लेकिन रावण हार मानकर भागना नहीं चाहता था। उसने फिर से सचमुच कड़ी लड़ाई शुरू कर दी।

काल बहुत क्रोधित हो गया और उसने यमराज से कहा कि वह किसी ऐसे व्यक्ति को बहुत जल्दी दंडित करना चाहता है जिसने कुछ गलत किया है।

यमराज ने काल को प्रतीक्षा करने के लिए कहा क्योंकि वह किसी पर टाइम बार नामक एक विशेष उपकरण का उपयोग करने जा रहे थे।

उसने अपना विशेष हथियार उठाया और रावण पर प्रहार करने ही वाला था कि अचानक आग प्रकट हुई और आस-पास की हर चीज़ को जलाने लगी।

यहां तक ​​कि देवता भी बहुत करीब से देख रहे थे क्योंकि यम और रावण एक बड़े युद्ध में एक-दूसरे से लड़ रहे थे।

यमराज किसी को दंड देने ही वाले थे कि तभी पितामह ब्रह्मा प्रकट हो गए और उनका हाथ पकड़कर रोक दिया।

कहा: “रुको यमराज, दंड देने से पहले मेरी बात सुनो।” मैंने रावण को वरदान दिया कि वह देवताओं के हाथों नहीं मारा जायेगा।

यदि मैं अपना दिया हुआ विशेष वरदान वापस ले लूँ तो यह उचित नहीं होगा क्योंकि इससे उस वरदान का महत्व नष्ट हो जायेगा।

यह सुनकर यमराज ने तुरंत कालदण्ड रख दिया । कहा… मेरा धर्म  वरदान और कालदण्ड दोनों का सम्मान करना है।

अगर कोई हमारा आत्म-सम्मान छीन लेता है, तो ऐसा लगता है जैसे अब हमारे पास घर कहने के लिए कोई जगह नहीं है। और जब मैं इस अंधकार को दूर नहीं कर सकता, तो लड़ने की कोशिश करते रहना व्यर्थ है।

यमराज चले गये और अब उन्हें कोई नहीं देख सकता था।

उस को विश्वास था कि उसने यम को हरा दिया है, इसलिए वह लंका में अपने घर वापस चला गया।

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